sabla ban jaanaa chahti hoon



सबला बन जाना चाहती हूँ
तोड दिवारों से रिश्ता
अपनी पहचान बनाना चाहती हूँ
पँख बना कर ओडनी को
आकाश में उड जाना चाहती हूं
निकल बन्द सिपी से बाहर
कुछ कर दिखाना चाहती हूँ
पाना चाहती हूं अपना आस्तित्व
अपनी पहचान बनाना चाहती हूं
पढ लिख कर मन्जिल पाऊं
स्वावलँबी बन जाना चाह्ती हूँ
न जीऊँ किसी के रहम पर
खुद सपने सजाना चाहती हूँ
पुरुष की नियत नारी की नियती
ये भ्रम मिटाना चाहती हूँ
मैं इक अबला नारी बस
सबला बन जाना चाहती हूँ

Comments

वाह क्या खूब कही है निर्मला जी आपने.. वैसे नारी अब अबला नहीं रही, इतनी सबल हो चुकी है की पुरषों की दुनिया को चुनौती दे रही है.

नए साल की बधाई..
Tushar Mangl said…
Great!!! Amazing !!!
खुदा आपकी आवाज़ बुलंद करे और आप की भावनाओ को अपने हृदय मे स्थान दे बस इतना ही कहना चाहूँगा |
माँ सरस्वती आपकी रचनाओं मे अपनी कृपा यूँ ही बनाए रखे.........
tamanna said…
Bohot sundar hai:-) :-) :-)

Popular Posts